लाइसेंस बनवाने में नहीं कोई ब्रेक
इंदौर. यदि आपकी उम्र कम है फिर भी लाइसेंस की चाहत है तो कोई दिक्कत नहीं। इसके लिए बस एक शपथ पत्र की जरूरत है। पते और अन्य कागजात के लिए दस्तावेज न भी हो तो चलेगा। आखिर एजेंट किस मर्ज की दवा है.. इंदौर में हर माह बनने वाले चार हजार लाइसेंस में से ज्यादातर लाइसेंस बिना यातायात नियम के परीक्षण और ट्रायल की औपचारिकताओं के एजेंट ही बनवा रहे हैं।
वे स्कूलों से लर्निग लाइसेंस बनवाकर ला देते हैं, आवेदक को जाने की जरूरत ही नहीं है। अब रही बात लाइसेंस पक्के करवाने की तो आरटीओ में यह काम भी बिना औपचारिकताओं के ही हो जाता है। हां इसके लिए जेब ज्यादा ढीली करना होगी। मिलीभगत से बने इन लाइसेंस में से कइयों के रिकॉर्ड नहीं हैं तो कइयों की फीस नहीं। हद तो तब हो गई जब स्कूलों से ट्रैक्टर और हैवी व्हीकल के लाइसेंस जारी हो गए।
विदेशों में सबसे मुश्किल है लाइसेंस बनना। दक्षिण भारत, हैदराबाद, पुणो, नासिक, दिल्ली-मुंबई में भी लाइसेंस बनवाने में लोगों को यातायात नियम की जानकारी और कई तरह के टेस्ट के बाद लाइसेंस के बाद ही दिया जाता है लेकिन इंदौर में यह काम बड़ा आसान है। भारत की नागरिकता के लिए लाइसेंस एक पहचान पत्र है। जुलाई-07 में जब से लाइसेंस प्रक्रिया के सरलीकरण के तहत स्कूलों को लर्निग लाइसेंस बनाने का अधिकार दिया है, समस्या दोगुना हो गई है।
स्कूलों से बिना किसी यातायात नियम के परीक्षण के धड़ल्ले से थोकबंद लर्निग लाइसेंस जारी हो रहे हैं। एजेंट ही लर्निग लाइसेंस बनवाकर ला देते हैं, आवेदक को जाने की जरूरत ही नहीं है। पहले विजयनगर के आरटीओ में कम्प्यूटर पर प्रश्नों के सही जवाब देने पर ही लर्निग लाइसेंस बनता था पर अब वहां गिनेचुने लोग आते हैं।
लाइसेंस पक्के तो आरटीओ अधिकारी ही करते हैं पर यहां भी ज्यादातर बिना औपचारिकताओं के ही हो जाते हैं। अधिकारियों का कहना है ट्रायल के लिए ड्राइविंग टेस्टिंग ट्रैक नहीं है, स्टाफ भी कम है। एक आरटीआई है जो ट्रायल की औपचारिकताएं पूरी करता है।
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