breking nyooj
कलाकार : कोयल पुरी, संगीता ,स्वाती सेन ,हर्ष छाया , विनय आपटे , विरेन्द्र सक्सेना , अभिमन्यु सिंह , राहुल वोहरा
निर्देशक : विशाल ईनामदार
निर्माता : स्मिता और श्रेयस्कर मास्कर
संगीत : कौशल ईनामदार
तेज रफ्तार से भागती जिंदगी और उसकी महत्वकांक्षाओं की उड़ान के पीछे छिपे सच को तलाश करती एक जिद का नाम है ब्रेकिंग न्यूज । जिसमें है सेक्स , क्राइम और हिंसा से भरा हुआ स्याह चेहरों का खेल और इस हमाम में नेता ,अफसर, और टीआारपी के पीछे भागते मीडिया के आका नंगे बदन खड़े हैं, जहां शर्म भी खुद से शर्माती है। इस विंब में एक ऐसा चेहरा भी है जो एक झीनी सी उम्मीद जगाता है। टीआरपी के खेल के बीच भी अभी कुछ ऐसा है जो मीडिया से उम्मीदों को जिंदा रखता है। जी हां, वो है एक खबर जो तलाश करती है अपने से आगे की खबर और छोड़ जाती है अनगिनत प्रश्न .....मीडिया और समाज के रिश्ते के बीच के उस रिक्त स्थान के लिए जहां पर सच को तलाश करते हुए दिखलाई पड़ते हैं क्राइम रिपोर्टर विद्या सहगल जैसे चेहरे जो पत्रकारिता के वास्तविक उसूलों के लिए काम कर रहे हैं।
फिल्म की कहानी डेडलाइन और सच नाम के दो टीवी चैनलों के टीआरपी की दौड़ में एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ से शुरू होती है जिसके एक सिरे पर क्राइम रिपोर्टर विद्या सहगल है तो दूसरें पर अभिमन्यु सिंह और इनके स्टिंग ऑपरेशन में अपनी रूह को हैवानियत के दरिंदों से बचाने की उम्मीद में संगीता जैसा किरदार। इस स्टिंग ऑपरेशन की चपेट में आता है शहर का एक रंगीन मिजाज एसपी और डीआईजी और फिर शुरू होता है टीआरपी का खेल जहां पर कुछ भी सेंसर्ड नहीं है, क्योंकि चैनल का बॉस मानता है कि सेक्स और क्राइम बिकता है। इसलिए वो सब कुछ सही है जो चैनल की दर्शक संख्या बढ़ाता हो। इसके बाद शुरू होती है एक जंग, खबर को उसकी मंजिल तक पहुंचाने की।
निर्देशक विशाल ईनामदार बधाई के पात्र है जिनके पास सच कहने की जुबां और सलीका दोनों है । कोयल पुरी ने बेहतर अभिनय किया है । फिल्म में संगीत और नाच गाने की गुजांइश कम थी और यहां दर्शकों को निराशा हाथ लग सकती है। रही बात बॉक्स ऑफिस पर सफलता की तो टीवी स्क्रीन पर लगभग रोज स्टिंग ऑपरेशन देखने वाला दर्शक आता है या नहीं ये देखने वाली बात होगी। हालाकिं यहां उसके लिए एक सच इंतजार कर रहा है।
दरअसल ब्रेकिंग न्यूज समाज की घटनाओं पर ही आकर खत्म नहीं हो जाती बल्कि समाज पर नजर रखने वाले लोगों की जिंदगी को भी बयान करती है। भेड़िये यहां भी हैं जो प्रमोशन के नाम पर सेक्स की भूख मिटाना चाहते है जिससे विद्या सहगल जैसे पत्रकार तो अपने आपको बचा ले जाते हैं पर कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो अपने शरीर को अपनी ताकत और मर्दो की कमजोरी मान लेते हैं। और प्रगति के घोड़े की लगाम अपने हाथ में रखने वाली लड़कियों को कभी-कभी इसकी कीमत अपनी जिंदगी से भी चुकानी पड़ती है। मीडिया में आज सेक्स और क्राइम का घालमेल तड़के की तरह इस्तेमाल होता है चाहे वो टीवी चैनल की स्क्रीन हो या मीडिया का ऑफिस, खेल यहां भी होता है बस खिलाड़ी और मोहरे बदल जाते है । और इनकी कहानियॉ गॉसिप बनके रह जाती हैं। वक्त से तेज भागते समाज और मीडिया दोनों का सच भी शायद यही है क्योंकि
हर आदमी में होती है थोड़ी सी भूख और प्यास जब चाहे जहां चाहे आग लगा लो ..फर्क नहीं पड़ता । पर खबरदार कोई देख रहा है..