फर्क कैसा ?
विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में पैदाइशी तौर पर ही सेंस ऑफ जस्टिस होता है। तभी तो वह अपनेपन को समझ पाते हैं। धीरे-धीरे यही उन्हें अपनों और परायों में फर्क करना सिखाता है। पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चों को बड़ों के साथ ही अपने हमउम्र की भी इज्जत करना सिखाएं।
आपको क्या करना है:
* अगर बच्चों के साथ इज्जत से पेश आएं, तो वह भी अपने सेंस ऑफ जस्टिस का पूरा उपयोग करते हुए स्थितियों के बारे में काफी साफ नजरिया रखते हैं। बच्चों को सिखाएं कि जो लोग लोगों जैसे हैं उन्हें उसी हिसाब से पसंद करें। वह अपने दोस्तों या करीबियों को सिर्फ यह देखकर न पहचानें कि वह क्या कर सकता है और क्या नहीं। बच्चे टाइप कास्ट में बंटे नहीं रहते जैसे-शर्मीले, जिद्दी या फिर किसी और तरह के। यह आप ही हैं, जो उन्हें इस केटेगरी में डालते हैं या फिर वैसा माहौल बनाते हैं।
बच्चे की स्प्रिट हमेशा ऊंची रखें, लेकिन उसमें सुपीरियर फीलिंग ना आने दें। यह कुछ ऐसा कहने से आती है, जैसे आप उससे अच्छे हैं, आप ज्यादा अच्छा जानते हैं या फिर फलाना बच्च खराब है वगैरह। अपने डर को बच्चों के सामने मत आने दीजिए। आप ही डरेंगे तो बच्चों का क्या होगा। बच्चे पर असर
* बच्चे के बाल मन पर डांटने, मारने या डराने का असर तो होता है, लेकिन उतना नहीं जितना लोगों के सामने बेइज्जत होने का होता है।
* आप अपने बच्चे के साथ ही किसी दूसरे के बच्चे पर भी ऐसा माहौल न बनने दें। उसे ‘बैड बॉय’ या ‘बैड गर्ल’ की संज्ञा न दें।
* बच्चे में छोटी-छोटी चीजों जैसे खेल में पहले बारी न मिलने जैसी चाजों का भी असर पड़ता है। यह आपके लिए नहीं, लेकिन उनके लिए एक बड़ी बात हो सकती है। छोटे बच्चों पर सबसे ज्यादा असर अपने पैरेंट्स और मीडिया का पड़ता है, इसलिए आपको खुद पर भी कंट्रोल रखना है और मीडिया की एप्रोच तक भी।
0 comments:
Post a Comment