डायबिटीज से बचना है तो

नई दिल्ली. रोजमर्रा की जिंदगी में काम के बोझ से दबे युवाओं को डायबिटीज से निबटने के लिए दवाओं पर निर्भर रहने की बजाय वजन घटाने और अपनी जीवनशैली बदलने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। यह सलाह सर गंगाराम अस्पताल के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. अर्चना आर्य ने दी।
डॉ. आर्य ने कहा कि दवाओं को तो आखिरी विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि शरीर को छरहरा और चुस्त-दुरुस्त बनाने व व्यायाम पर ज्यादा ध्यान दिया जाए, खासतौर पर बच्चों को।
इंद्रप्रस्थ अपोलो के डॉ.एसके वांगू के अनुसार, ‘दफ्तर में घंटों गुजार देने वाले आज के कामकाजी युवाओं को शारीरिक व्यायाम की फुर्सत ही नहीं है। ऐसे में डॉक्टर उन्हें डायबिटीज से बचाने के लिए ‘मेटफोमिन’ जैसी प्रतिरोधक दवाओं के सेवन का परामर्श देते हैं। ये दवाएं इंसुलिन के संवेदक एजेंट के रूप में डायबिटीज के खतरे को कम कर देती हैं’।
बढ़ता खतरा डायबिटीज का : डॉक्टरों के अनुसार युवा पीढ़ी टाइप-टू डायबिटीज का शिकार हो रही है। इसकी वजह तेजी से बदलती जीवनशैली है। घर के बाहर खाना, जंकफूड और भोजन का कोई निश्चित समय न होने से डायबिटीज के लिए शरीर में अनुकूल स्थिति बन जाती है। शराब और सिगरेट का नियमित सेवन करने से तो डायबिटीज से जुड़ी समस्याएं और भी गंभीर हो जाती हैं।
चिकित्सा विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि शहरी जीवनशैली में बदलाव नहीं लाया गया तो आने वाले समय में डायबिटीज की समस्या और गंभीर होगी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2006) के अनुसार देश में 35 से 49 साल के दो फीसदी से ज्यादा पुरुष और महिलाएं डायबिटीज से पीड़ित हैं।
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