View technorati.com
Wana Masti Fun, Fun Masti, Masti, Enjoy Masti

अपनी भाषा मे देखे!!

This is Me Your Best Friend Wana Be My Best Friend Just Give Me Your Comments Here And I will Reply Sure

Monday, January 7, 2008

मल्लिका शेरावत की मुगलई कोशिश

परदे के पीछे. मल्लिका शेरावत ‘मान गए मुगले आजम’ नामक हास्य फिल्म में नौशाद-शकील की अमर रचना ‘प्यार किया तो डरना’ के अनु मलिक द्वारा पुन: बनाए गए संस्करण पर मधुबाला की अदा में नृत्य प्रस्तुत करने जा रही हैं। इस हास्य फिल्म में किस दृश्य के अनुरूप यह गीत प्रस्तुत किया जा रहा है, यह बताना कठिन है परंतु ‘मुगले आजम’ में यह मामूली परिवार में जन्मी अनारकली का विद्रोह गीत है और इश्क के सामने एक शक्तिशाली शहंशाह के नजरें झुकाने का दृश्य है- ‘परदा नहीं जब कोई खुदा से, बंदों से परदा करना क्या।’

ज्ञातव्य है कि इस गीत के लिए कांच महल बनाया गया था और यह केवल अकबर की शान के लिए नहीं बनाया गया था, वरन एक विशेष क्षण को नाटकीय ऊंचाई देने के लिए बनाया गया था। बांदी अनारकली की छवि सैट पर लगाए गए हजारों शीशों में नजर आती है, जब वह गाती है-‘छुप न सकेगा इश्क हमारा, चारों तरफ है उनका नजारा।’

कांच के टुकड़ों में उभरी प्रेमियों की छवियां एक शहंशाह को बौना बना देती हैं। पृथ्वीराज कपूर के चेहरे पर क्रोध और बेबसी के भाव उभर आते हैं। इस कांच महल में परछाइयों के कारण शूटिंग करना असंभव लग रहा था और विदेश से आए विशेषज्ञ भी परेशान थे, परंतु कैमरामैन आरडी माथुर ने सफेद चादरों पर बाऊंस लाइट का इस्तेमाल करके इस अद्भुत छायांकन को संभव बनाया।

अनारकली अपना खंजर अकबर के चरणों में रखती है-‘आज कहेंगे दिल का फसाना, जान भी ले ले चाहे जमाना।’ यह गीत भारतीय सिनेमा के महानतम प्रस्तुतीकरण में शिखर का स्थान रखता है, क्योंकि एक तीव्र भावना वाला दृश्य प्रस्तुत किया गया है और गीत पटकथा का अविभाज्य अंग बनकर उभरता है।

इस तरह के प्रस्तुतीकरण ही भारतीय सिनेमा की अपनी निजी पहचान हैं। दुनिया के किसी भी देश के सिनेमा में गंभीर नाटकीय मसला इस तरह नृत्य गीत द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जाता। हमारी सिनेमाई ऊर्जा की यही गंगोत्री है। इश्क के केंद्रीय होने को शकील इस तरह प्रस्तुत करते हैं ‘इश्क में जीना, इश्क में मरना, और हमें अब करना क्या।’

शकील साहब इस कदर हिंदुस्तानी थे कि उर्दू में लिखते हुए भी उन्होंने दिलीप कुमार की ‘गंगा जमुना’ में क्षेत्रीय भाषा में कमाल के गीत लिखे क्योंकि दिलीप साहब ने सारे संवाद भी पूरबी में रखे थे। यह बहुत साहस का काम था कि इतनी महंगी फिल्म पूरी तरह क्षेत्रीय भाषा में गढ़ी जाए।

बदायुं के रहने वाले शकील साहब ने कितनी सहजता से लिख दिया’ नैन लड़ जाइवे तो मनवा में कसक होइबे करी।’ इसी से प्रेरित होकर आमिर खान ने ‘लगान’ भी पूरबी में गढ़ी। जावेद अख्तर ने भी उसी शैली में गीत लिखे। आज के घोर असहिष्णुता के दौर में कैसे जानें लोग हमारे सिनेमा की हिंदुस्तानियत और कैसे समझें विलुप्त होती सी गंगा-जमुनी संस्कृति।

0 comments:

अब Hindi का जवाना है

Name:
Email:
Comment: