सरकारें बदलेंगे मंगल और शनी
ग्रह योग. वर्ष 2008 में पड़ने वाले विक्रमीय संवत्सर के योगों में शनि व मंगल का वक्री होना असंतोष व राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देगा। युद्ध, उन्माद या आतंकवाद से जनजीवन प्रभावित होने से इनकार नहीं किया जा सकता। यह योग वित्त की हानि व पशुधन में कष्ट पहुंचाने वाला भी है।
ज्योतिष के संवत्सरफल-दिग्दर्शक ग्रंथों में नारद मुनि कृत ‘मयूरचित्रम्’ बहुत विश्वसनीय माना जाता है। इसमें बारहों महीनों में वर्षा, कृषि, बाजार, परस्पर संबंध, लोकजीवन, युद्ध-आतंक, राजनीतिक उथल-पुथल पर योगों के अनुसार विचार किया गया है। इस ग्रंथ के मतों के अनुसार पौष माह की अमावस्या को मूल नक्षत्र होने से घास की कीमतें सामान्य रहेंगी और फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा तिथि बढ़ने से जनता के सुखों में वृद्धि होगी।
इस वर्ष शनि के वक्री काल में अमेरिका का वर्चस्व घटेगा। पौष की पूर्णिमा को रविवार होने से विश्व में तनाव व आतंकवाद बढ़ सकता है और कहीं युद्ध भी हो सकता है। शुक्ल पक्ष में वृद्धि तिथि की अपेक्षा क्षय तिथियों की अधिकता होने से पूरे वर्ष का समय सरकार व जनता के लिए कष्टकारक रहेगा। शनि व राहु दोनों के सिंह राशि में होने से सरकारों को राजनीतिक भय रहेगा।
वर्ष कुंडली में सूर्य से मंगल ग्रह आगे चल रहा है, जो वर्षा में विलंब या कमी को दर्शाने वाला है। देश के कतिपय भागों में गत मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष में बारिश हुई है जो आषाढ़ मास में पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र से वष्र की संभावना को दर्शाता है। एक अन्य योग जो वर्षा की कमी को बताता है वह यह कि इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का क्षय हुआ है और उस दिन रविवार भी है, जो अन्न की कमी को बता रहा है।
ज्येष्ठ के दोनों पक्षों में प्रतिपदा को बुधवार है जो जनता को भय और बीमारियां देने वाला है। ऐसे में प्रत्येक जातक को अपनी-अपनी राशि के अनुसार पूजा-पाठ, शिव तथा चक्रधारी विष्णु की आराधना करना श्रेयस्कर होगा। पौष की अमावस्या को शनिवार होने से बाद के समय में अनाज के भावों में उछाल आने की संभावना है।
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