जीत हो या हार, मोदीत्व तो रहेगा
दृष्टिकोण. गुजरात विधानसभा चुनाव का केंद्रबिंदु रहे मोदीत्व के तीन पहलू हैं। पहला, अवसर को भुनाने का नरेंद्र मोदी का सामथ्र्य, दूसरा, विकास के बारे उनका नजरिया और तीसरा, उनकी अधीरता। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौत के सौदागर की टिप्पणी को भुनाने में उन्होंने जरा भी देर नहीं की। चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में तो उन्हें सोहराबुद्दीन और अफजल गुरु तक मुद्दे उठाने में भी कोई संकोच नहीं हुआ। मोदी ये मुद्दे वैसे भी उठाते। यह अलग बात है कि सोनिया की टिप्पणी ने उन्हें ये मुद्दे प्लेट में परोसकर दे दिए। मोदी ने वाइब्रंट गुजरात को जिस आक्रामक अंदाज में पेश किया वह कोई दूसरा नहीं कर सकता था। उन्होंने खुद को दिल्ली में बैठे तीन दिग्गजों-मनमोहन सिंह, पी चिंदबरम और मोंटेकसिंह अहलूवालिया से भी बड़े आर्थिक सुधारवादी के रूप में पेश किया। असंतुष्टों को नजरअंदाज करना और समर्थकों को साथ लेकर चलना भी मोदी की एक बड़ी खूबी है। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि गुजरात विधानसभा के हाल में संपन्न चुनाव में मोदी और मोदीत्व ही सर्वप्रमुख मुद्दा था।
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