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Friday, December 21, 2007

सुलह में ही मलेशिया का हीत

दृष्टिकोण. malaysia यह संतोष का विषय है कि मलेशियाई प्रधानमंत्री ने असंतुष्ट भारतवंशियों से शांति व सुलह के लिए पहल की है। नस्लीय भेदभाव के खिलाफ एकजुट होकर 10 हजार से ज्यादा भारतवंशियों ने मलेशिया के इतिहास में सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था। और सरकार ने उसके बाद से उन पर दमन का सिलसिला चलाया।

प्रदर्शन की अगुआई कर रहे 31 नेताओं के खिलाफ लगाए गए हत्या के आरोप को वापस लेते हुए प्रधानमंत्री बदावी ने भारतीय समुदाय को आश्वस्त किया है कि वे उन्हें निराश नहीं करेंगे। एक हफ्ते तक चली गहमागहमी और नोकझोंक के बाद बदावी ने विश्वास दिलाया है कि उनकी सरकार नस्लीय भेदभाव की शिकायतों पर गौर करेगी।

बदावी का कहना है कि इससे पहले यहां कभी मलय और भारतीयों के बीच झगड़े नहीं हुए। उन्होंने कहा कि मैं सभी वर्ग के लोगों का सम्मान करना जारी रखूंगा। भारतीयों के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करने का सवाल ही नहीं उठता। बदावी ने यह भी संकेत दिए कि गैर मुस्लिमों के मामलों को देखने के लिए सरकार अलग से एक विभाग बनाएगी।

लेकिन इन सबके बीच हिंदू राइट एक्शन फोर्स(हिंड्राफ) के पांच नेताओं को आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत अभी भी जेल में ही रखा गया है। इन पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का आरोप है। फिर भी अचानक बदावी के स्वरों में आए सद्भावनापूर्ण परिवर्तन के पीछे आने वाला आम चुनाव है। उन्हें डर है कि भारतवंशियों के साथ ज्यादा कड़ाई की गई तो उनका आंदोलन हिंसक रूप ले सकता है और तब निपटना ज्यादा मुश्किल होगा।

इधर एक खतरा और बढ़ गया है, वह है लिट्टे का। श्रीलंका में हताश हो चुके लिट्टे के नेता मलेशिया में तमिल मूल के लोगों में अपनी जडें़ जमाने की कोशिशें कर सकते हैं। इसी खतरे को भांपते हुए बदावी ने कुछ सुधारवादी कदम उठाकर प्रगतिशील विचार वाले भारतवंशियों को अपने पाले में लाने की कोशिश की है।

घाघ मलेशियाई नेता बदावी को यह मालूम है कि सत्ताधारी गठबंधन के घटक मलेशियन इंडियन कांग्रेस(एमआईसी) की पकड़ भारतवंशियों पर ढीली पड़ चुकी है और वे अपनी समस्याओं के समाधान को लेकर एमआईसी से नाउम्मीद हो चुके हैं।

बदावी भारतवंशियों को मदद का भरोसा देने के साथ यह भी संदेश देना चाहते हैं कि वे हिंड्राफ के नेताओं का साथ छोड़ दें क्योंकि उन्हें नहीं बख्शा जाएगा। बदावी की कोशिश यही है कि भारतवंशियों का बड़ा समूह एमआईसी के झंडे के नीचे ही रहे क्योंकि वह सत्ताधारी संगठन का घटक है।

बदावी की इन तमाम कोशिशों के बीच हिंड्राफ के नेताओं का विरोध थमने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। मलेशिया के बाहर यह संदेश पहुंच रहा है कि वहां नस्लीय आधार पर भेदभाव और दमन का सिलसिला चलाया जा रहा है और भारतवंशी इसके सबसे ज्यादा शिकार बन रहे हैं।

बदाबी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि इस संदेश से विश्वबिरादरी की जो धारणा बन रही है इससे उनकी साख और विश्वसनीयता पर प्रतिकूल असर तो पड़ेगा ही, तरक्की की ओर बढ़ते मलेशिया के कदम भी प्रभावित होंगे।

मलेशिया में भारतवंशी पीढ़ियों से रह रहे हैं, इस नाते उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान देश के भीतर ही देखना चाहिए। मलेशियाई भारतीयों की समस्याओं के बारे में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि का प्रलाप भी अवांछनीय है। करुणानिधि यह सोचते होंगे कि उनके ऐसा करने से वे अपने प्रदेश की जनता के सामने तमिलों के सबसे बड़े हितैषी के रूप में दिखेंगे, तो इससे मलेशियाई तमिलों की समस्याएं सुलझने की बजाय उलझेंगी और तनाव ही बढ़ेगा।

करुणानिधि के बयान को मलेशियाई सरकार ने अपने आंतरिक मामले में हस्तक्षेप माना है। हिंड्राफ के नेताओं के करुणानिधि से संपर्क के चलते मलेशिया सरकार को यह कहने का भी मौका मिल गया है कि ये लोग अपने देश की संप्रभुता के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं। इन स्थितियों की वजह से भारतवंशियों की सही, बाजिव और वैधानिक मांग का आधार कमजोर ही हुआ है।

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