
* पत्नी के साथ रोजाना की तू-तू-मैं-मैं और झंझटों से परेशान संता देवा ने सघन वन आश्रम में जाकर संत गुरु बंता ध्यानी से आग्रह किया- ‘महाराज, मेरी बीवी मुझे बेहद तंग करती है। आए दिन की किचकिच अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होती। कोई उपाय बताएं?’
संत गुरु बंता ध्यानी एक लंबी सांस लेते हुए बोले, ‘बालक, अगर इसका उपाय मेरे पास होता, तो मैं भी आज गृहस्थाश्रम का सुख भोग रहा होता!’
* महीने भर पहले विवाहित बंता मान की पत्नी का अचानक देहांत हो गया। वह गला फाड़-फाड़ कर रोने लगा। मोहल्ले वालों ने उसे बहुत सांत्वना दी, मगर उसने रोना बंद नहीं किया। अंतत: उसके पड़ोसी संता लाल ने उससे पूछा, ‘पिछले साल तेरे पिता ख़त्म हुए। तब भी तू ख़ूब रोया। सबने तुझे ढांढ़स बंधाया और तू चुप हो गया था। इसी तरह दो माह पहले तेरी मां का देहांत हुआ। तब भी तू रोया, लेकिन लोगों के समझाने पर चुप हो गया। पर इस बार तो तू हद कर रहा है। किसी की बात नहीं मान रहा है। आख़िर क्या बात है? भाई, ये तो भगवान की लीला है। इसे तो स्वीकारना ही पड़ता है। इसमें कोई भी क्या कर सकता है?’
बंता मान रोते-रोते बोला, ‘जब मेरे पिताजी ख़त्म हुए, तब मोहल्ले के लोगों ने मुझे सांत्वना दिलाई कि चिंता मत कर, हम भी तेरे पिता जैसे ही हैं। मेरी मां मरीं, तो मोहल्ले की कई महिलाओं ने मुझे ढांढ़स बंधाया कि बेटा चुप रह, हम भी तो तेरी मां जैसी ही हैं। लेकिन अब तो मुझे लग रहा है कि जीवन में मेरा कोई नहीं। मैं अकेला रह गया..’ और वह फिर फूट-फूट कर रोने लगा।
-बंता कुमार, ‘लाइफ इंप्राइजनमेंट।’
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