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Monday, December 3, 2007

परदे के पीछे. रनवीर कपूर मात्र सात वर्ष की आयु में अपने पिता ऋषि कपूर के साथ ‘याराना’ नामक फिल्म के सेट पर गए थे और एकटक माधुरी को निहारते रहे थे। नन्हें रनवीर को माधुरी से इश्क हो गया, जैसे उनके पिता को ‘जोकर’ में अपने से बड़ी आयु की सिम्मी से हो गया था।

मजे की बात यह है कि कमसिन उम्र में शशि कपूर अपने पिता पृथ्वीराज के साथ ‘सिकंदर’ के सेट पर गए थे और उन्हें अनन्य सुंदरी वनमाला से इश्क हो गया था। ज्ञातव्य है कि वनमाला ग्वालियर के श्रेष्ठि घराने की सुशिक्षित सुंदर कन्या थीं और भारतीय सिनेमा में सौंदर्य परंपरा उन्हीं से प्रारंभ होकर नसीमबानू, मधुबाला, सुचित्रा सेन से होती हुई माधुरी तक जाती है।

राजकपूर को भी चौदह की उम्र में एक सजातीय कन्या से प्रेम हो गया था और इकलौती लाड़ली के अति समृद्ध पिता घरजमाई चाहते थे परंतु राजकपूर ने उन्हें इनकार किया कि वह अभिनेता-फिल्मकार बनना चाहते हैं। बहरहाल केवल कपूर ही कमसिन उम्र से आशिक मिजाज नहीं होते। यह बड़े होने की स्वाभाविक प्रक्रिया है।

इस विषय पर हॉलीवुड में अनेक फिल्में बनी है और ‘समर ऑफ फोर्टीटू’ तो इतनी लोकप्रिय और असरकारक सिद्ध हुई कि कमसिन उम्र के प्रेम के लिए मुहावरा ही बन गया कि हर किसी के जीवन में समर ऑफ 42 होता है। इसी विषय पर बनी ‘ग्रेजुएट’ को भी इसी पाठ्यक्रम की फिल्म माना जाता है। राजकपूर की ‘जोकर’ के प्रथम भाग में युवा छात्र अपनी शिक्षिका से प्यार करने लगता है और शिक्षिका का हमउम्र प्रेमी कमसिन हृदय की भावना को समझता है। सोलह साल की उम्र ही ऐसी होती है।

बचपन का चंपई अंधेरा जवानी के सुरमई उजाले से मिलता है। नदी की धार को किसने रोका है। निर्माणाधीन अवस्था में फिल्म देखकर सत्यजीत राय ने राजकपूर को सलाह दी थी कि जोकर भाग-एक को संपूर्ण फिल्म की तरह प्रदर्शित करें तो यह विश्व सिनेमा की धरोहर बन जाएगी। चैप्टर दो और तीन के भार से इस धरोहर को हानि हो गई। राजकपूर अपनी महाकाव्य की कल्पना में इस महान खंड काव्य को अपना सही स्थान नहीं दिला पाए।

आज के दौर में सौंदर्य की जगह सैक्स की छवि ने ले ली है और बिपाशा बसु को सैक्सी होने के कारण सुंदर भी मान लिया गया है और विदेश में प्रकाशित होने वाली पत्रिका सबसे अधिक सैक्सी पुरुष की गणना भी प्रस्तुत करती है।

मांसलता के दौर में सौंदर्य की परिभाषा भी बदल रही है। इसी के साथ सैक्स का दृष्टिकोण भी बदल रहा है। जो विषय कालीन के नीचे या चरमराते पुराने अलमारी में रखे थे। उन्हें झाड़-बुहारकर बैठक में सजाया जा रहा है। उनका तहखानों में बंद होना जितना सारहीन था, उतना ही आज उनकी नुमाइश करना भी निर्थक है। असल बात है दिमागी तहखाने को रोशन करने की।

बहरहाल वनमाला, मधुबाला, सुचित्रा सेन और माधुरी का सौंदर्य कुछ ऐसा है कि कमसिन आयु से सठिया गए लोग भी उन्हें देखना चाहते हैं। युवा रनवीर कपूर से लेकर वृद्ध एम.एफ.हुसैन तक इस माधुर्य सौंदर्य के दीवाने हैं।

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