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Tuesday, December 4, 2007

ये बेबस क्यों?

इंदौर। इंदौर के सिटी ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को सोमवार को दिल्ली में राष्ट्रीय उत्कृष्टता अवार्ड मिला पर क्या राज्य सड़क परिवहन निगम (रोडवेज) इससे कोई सीख लेने ये बेबस क्यों?को तैयार है। कतई नहीं, असल में वह बेबस है। सरकार ने दो साल पहले भारी घाटा बताकर उसे बंद करने का निर्णय लिया था। तबसे अनुबंधित बसें चल रही हैं। इससे रोडवेज को दो करोड़ रु. महीने आय हो रही पर लाखों यात्री परेशान हैं। परिवहन की इन तस्वीरों के रंगों का आकलन ‘भास्कर’ ने किया।

एक ओर आकर्षक सिटी बसों को देखकर गर्व होता है तो वहीं सरवटे, गंगवाल और नौलखा बस स्टैंड की बसों को देखकर दु:ख। यहां रोजाना 20 हजार यात्रियों की फजीहत होती है। हालांकि परिवहन मंत्री हिम्मत कोठारी ने अधिकारियों की बैठक लेकर सिटी बस की तर्ज पर रोडवेज की ‘इंटरसिटी बसें’ चलाने को कहा था पर मामला आगे नहीं बढ़ा।

..इसलिए चल गई सिटी बस
* इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड (आईसीटीएसएल) में पैसा प्राइवेट कंपनियों का है और नियंत्रण सरकार की। निजी निवेश के कारण स्टॉप और बसों के रखरखाव पर जोर।

* बसों पर नियंत्रण के लिए पहली बार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया और स्टाफ के व्यवहार के साथ रोड प्रबंध पर जोर दिया गया।

* आईसीटीएसएल संचालन के नॉर्म्स तय कर पालन की मॉनीटरिंग भी करता है। कुल आय का 5 प्रतिशत सिस्टम पर खर्च होता है।
(जैसा आईसीटीएसएल के सीईओ चंद्रमौलि शुक्ल ने बताया)

..और रोडवेज रह गई
* सिटी बस को प्रशासनिक सहयोग मिलता है। शहर में अवैध संचालन पर रोक है। वैसा सहयोग रोडवेज को नहीं मिला। अवैध बसों के संचालन से उसका घाटा बढ़ता गया।

* सिटी बस को प्रशासनिक अमला सहयोग करता है। किसी बस में तोड़फोड़ हो तो तत्काल कार्रवाई होती है जबकि रोडवेज की कई गाड़ियां जल गईं लेकिन कार्रवाई के नाम पर जांच की बात कही गई।

* कर्मचारियों पर नियंत्रण नहीं था, भ्रष्टाचार का बोलबाला था। थाने में वाहनों के पार्ट्स चोरी आदि के कई मामले दर्ज हुए।

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