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Tuesday, December 4, 2007

चांद और दस कहानियां

परदे के पीछ.सुधीर मिश्रा की ‘खोया खोया चांद’ और संजय गुप्ता की ‘दस कहानियां’ का प्रदर्शन एक साथ होने जा रहा है। सुधीर मिश्रा की फिल्म की पृष्ठभूमि सिनेमा संसार है और इस पृष्ठभूमि पर गुरुदत्त ने ‘कागज के फूल’ रची थी। हाल ही में फरहा खान ने ‘ओम शांति ओम’ नामक स्वांग गढ़ा था।

सुधीर मिश्रा की फिल्म मीना कुमारी के जीवन का काल्पनिक संस्करण प्रस्तुत करती है। श्याम बेनेगल ने हंसा के जीवन पर विश्वसनीय ‘भूमिका’ बनाई थी। ‘चांद’ का केंद्रीय पात्र सोहा खान ने अभिनीत किया है और उनकी माता शर्मिला टैगोर खान का कहना है कि सोहा उनसे बेहतर अभिनेत्री हैं।

सोहा स्वाभाविक हैं और आज की पीढ़ी की अनौपचारिकता उसके व्यक्तित्व का खास पहलू है, जबकि शर्मिला व्यावसायिक फिल्मों में अति नाटकीय थीं, परंतु सत्यजीत राय की फिल्मों में वह अत्यंत स्वाभाविक लगती थीं। फिल्म उद्योग की पृष्ठभूमि पर विशाल भारद्वाज स्टंट रानी नाडिया पर फिल्म बनाने जा रहे हैं। आजकल यह पृष्ठभूमि फिल्मकारों में लोकप्रिय होती जा रही है।

संजय गुप्ता की ‘दस कहानियां’ को 6 निर्देशकों ने बनाया है, जिनमें किसी ने भी अभी तक कोई तीर नहीं मारा है। हर कहानी का परिचय देने के लिए गुलजार ने अलग-अलग गीत लिखे हैं। कोई पांच दशक पूर्व ऋषिकेश मुखर्जी ने ‘मुसाफिर’ में तीन परिवारों की कथाएं प्रस्तुत की थीं और सारे पात्र एक ही मकान में अलग-अलग समय पर किराएदार रहते हैं। इसमें दिलीप कुमार ने एक गीत भी गाया था।

सत्यजीत राय ने भी रवींद्रनाथ टैगोर की तीन कहानियों को एक ही फिल्म में प्रस्तुत किया था। राम गोपाल वर्मा ने भी ‘डरना मना है’ में कुछ भय जगाने वाली कहानियां एक ही फिल्म में प्रस्तुत की थीं। सारांश यह कि इस तरह के प्रयोग होते रहे हैं। दर्शक को एक ही टिकट में मनोरंजन की विविध व्यंजनों वाली थाली परोसी जा रही है।

गौरतलब बात यह है कि दर्शक कथा तथा पात्रों से भावनात्मक तादात्मय बनाता है और एक ही फिल्म में उसे यह 10 बार करना होगा। अत: यह मनोरंजन के बदले तनाव पैदा कर सकता है। एक कहानी का रस दूसरी कहानी के रस से अलग होगा। अत: भारतीय नाट्य शास्त्र के अनुसार हर आधे घंटे में रस का परिवर्तन अजीब अनुभव हो सकता है।

संजय गुप्ता ने रस का रोलर कोस्टर बनाया होगा। तेज गति से ऊपर-नीचे चलने वाला एक इलेक्ट्रिक झूला। इनमें से एक कहानी में नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी ने साथ में काम किया है और यह 18 वर्ष बाद हो रहा है। श्याम बेनेगल की ‘मंडी’ में वे साथ देखे गए थे। आज निर्माता कहानी का संकट महसूस कर रहा है और संजय ने साहित्य से 10 कहानियां उठाई हैं, जिन पर ढाई घंटे की फिल्म नहीं बन सकती। अत: ढाई घंटे में उन्होंने दस कहानियां प्रस्तुत की हैं।

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